संपादक श्याम अवस्थी व उनकी पत्नी सुनीता अवस्थी ने किया देहदान…

संपादक श्याम अवस्थी व उनकी पत्नी सुनीता अवस्थी ने किया देहदान…

संपादक श्याम अवस्थी पत्नी सुनीता के साथ 👆

संपादक डा. गीता 👆

पार्थिव शरीर का पूरा सम्मान 👆

मेडिकल छात्रों के हित व परंपराओं में बदलाव के लिए लिया निर्णय…

स्पूतनिक’ लखनऊ संस्करण की संपादक डॉ. गीता पहले ही कर चुकीं हैं देहदान…

 लखनऊ/इंदौर। लोगों का संकल्प मृत्यु के साथ ही नश्वर शरीर के मिट्टी में मिल जाने की बात को झुठला देता है। ऐसा ही उदाहरण है, राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक ‘स्पूतनिक’ के प्रधान संपादक श्याम अवस्थी उनकी पत्नी सुनीता अवस्थी एवं ‘स्पूतनिक’ लखनऊ संस्करण की संपादक डॉ. गीता का, इन लोगों के शरीर के अंग इनकी मृत्यु के उपरान्त भी दूसरों के शरीर में जिंदा रहेंगे। मूल रूप से इंदौर के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्याम अवस्थी इस समय मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में रह रहे हैं, वहीं उनकी बहन उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में रहती हैं। अपने जीते जी मृत्यु के उपरांत देहदान का निर्णय लिये जाने के बाद श्याम अवस्थी व उनकी पत्नी को इस साहासिक निर्णय के लिए बधाई देने व सराहना करने के लिए लोग लगातार पहुंच रहे हैं। 
           मध्य प्रदेश के स्मार्ट/स्वच्छ शहर इंदौर से पिछले 65 वर्षो से प्रकाशित हो रहे साप्ताहिक ‘स्पूतनिक’ के वर्तमान में प्रधान संपादक श्याम अवस्थी व हाल में ही स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया से सेवानिवृत्त हुईं उनकी पत्नी सुनीता अवस्थी ने करीब 8-10 वर्षो के गहन मंथन के बाद इसी माह 10 नवंबर को भोपाल मेडिकल कालेज के एनाटोमी विभाग में मृत्यु उपरांत अपने शरीर के दान हेतु विधिवत रूप से फार्म भरा है। अपने इस निर्णय के बारें में इस संवाददाता से बात करते हुए पत्रकार श्याम अवस्थी ने कहा कि यह निर्णय लिए जाने के तीन प्रमुख कारण हैं, जिनमें मेडिकल कॉलेजों में ह्युमन बॉडी की कमी होना तथा मेडिकल छात्रों की पढ़ाई में आने वाली कठिनाईयां एक प्रमुख वजह है। हम लोग इलाज के लिए अस्पतालों में जाते हैं व स्वस्थ्य रहने के लिए सभी तरह की सुविधाएं चाहते हैं। परंतु इसके लिए हम अपने पार्थिव शरीर को दान करने के लिए तैयार नहीं होते यह दोहरा मापदंड बदलने की जरूरत है।
         उन्होने बड़ी बेबाकी के साथ दूसरा कारण बताते हुए कहा कि धर्म के नाम पर, पार्थिव शरीर को फला स्थान पर ले जाना, अस्थि विर्सजन, पिण्डदान एवं दसवां व तेहरवीं, भोज आदि व्यवस्था के परिवर्तन पर भी जोर देते हुए कहा कि अब समय आ गया है इसमें भी बदलाव की जरूरत है। उन्होने तीसरा जो कारण बताया कि आज के समय में अधिकांश परिवारों में बच्चों के पास समय का अभाव, देश से बाहर रहकर नौकरी करना, परिवार के सदस्यों द्वारा व्यक्ति की मृत्यु उपरांत होने वाले खर्च के लिए एक-दूसरे की ओर देखना भी एक वजह रही, वे कहते हैं कि समयानुसार इसमें भी बदलाव जरूरी है। पत्रकार श्याम अवस्थी ने बताया कि उनकी उम्र इस समय 66 वर्ष हो रही है व उनकी पत्नी की उम्र 62 वर्ष है। वे दोनों लोग पिछले 8-10 वर्षो से इस बारें में फैसला लेने के लिए विचार कर रहे थे। उन्होने कहा कि अपने इस निर्णय के लिए वे किसी से प्रभावित नहीं हुए न ही कोई जल्दी उन्हे प्रभावित कर सकता है। यह निर्णय उनका व उनकी पत्नी का खूब सोंच विचार के बाद लिया गया एक सही फैसला है। 
        यहां यह भी बताते चले कि इससे करीब 8 वर्ष पूर्व ही श्याम अवस्थी की बहन एवं ‘स्पूतनिक’ लखनऊ संस्करण की संपादक डॉ. गीता ने यह फैसला 12 जून 2014 में ही ले लिया था। उन्होने लखनऊ मेडिकल कॉलेज के एनाटोमी विभाग में इसका रजिस्ट्रेशन करा रखा है। फार्म पर उनके पति पत्रकार स्व. अरविंद शुक्ला व छोटी बेटी अंबिका ने सहमति/हस्ताक्षर किये हैं। डॉ. गीता के अनुसार उन्होने भी यह निर्णय खुद से लिया था, वे जब 18 वर्ष की हुई थीं तभी से ब्लड डोनेशन करती चली आ रही हैं। अपने जन्मदिन व उसके हर 6 माह बाद नियमित रूप से ब्लड डोनेशन करती रहीं तथा इंदौर मेडिकल कॉलेज में लिखकर दे दिया था कि इसके उसे डोनेट किया जाए जो खरीद नहीं सकता। उन्होने यह भी बताया कि वे करीब 1100 लोगों का नेत्रदान करा चुकी हैं। डॉ. गीता कहती हैं कि जब उन्होने देहदान का निर्णय लिया तो इसके लिए राजी होने हेतु पति अरविंद शुक्ला को काफी समय लग गया। यह निर्णय लेने के लिए डॉ. गीता ने भी कमोबेश श्याम अवस्थी वाले कारण ही बताए, साथ ही कहा कि इसका उद्देश्य प्रचार नहीं बल्कि परंपराओं में समयानुसार बदलाव लाना है। उन्होने कहा कि उनकी दो बेटियां हैं, बड़ी बेटी गीतिका विवाह उपरान्त पति के साथ अमेरिका में रह रही है तथा पति का स्वर्गवास हो चुका है। डॉ. गीता कहती हैं कि शरीर मृत्यु उपरांत भी किसी दूसरे के काम आए इससे बढ़कर क्या हो सकता है। 

शरीर के अंग दूसरों के शरीर में जिंदा रहेंगे…
वैसे तो मौत के बाद शरीर का देहदान भारत में पारंपरिक प्रथा नहीं है। सभी धर्मों में शवों की अत्येष्टि के अपने-अपने तरीके हैं। लेकिन अब मौत के बाद नेत्रदान और देहदान करने वालों की तादाद धीरे धीरे बढ़ रही है। इसका फायदा मेडिकल की पढ़ाई कर रहे स्टूडेंट्स को मिलता है। यहां पढ़ने वाले एमबीबीएस के स्टूडेंट दान में मिले शवों के माध्यम से मानव शरीर और अंगों के बारे में स्टडी करते हैं और डॉक्टर बनते हैं। अब समाज के पढ़े लिखे जागरूक लोग जीते जी अपना देहदान कर रहे हैं। इसका जीता जागता उदाहरण संपादक श्याम अवस्थी उनकी पत्नी व संपादक डॉ. गीता हैं। देहदान करने के लिए लोग मेडिकल कॉलेज में संपर्क कर एक फॉर्म भरकर देते हैं, जिसके बाद उस व्यक्ति की मौत की जानकारी मिलते ही डॉक्टरो की टीम उसके घर जाती है और पूरे मान सम्मान के साथ शव को लेकर मेडिकल कॉलेज वापस आती हैं। देहदान करने वाले की बॉडी को मौत के बाद तय समय सीमा के अंदर शव को मेडिकल कॉलेज लाया जाता है। कई बार मरने वाले की आंख से किसी नेत्रहीन के जीवन में रोशनी भी आ जाती है।
मेडिकल कॉलेज में शवों का होता है सम्मान…
मेडिकल स्टूडेंट मृत शरीर को शिक्षा और शिक्षक के जैसा सम्मान करते हैं, क्योंकि देहदान में मिले शव के जरिये ही मेडिकल स्टूडेंट को शरीर के बनावट की वास्तविक जानकारी हासिल होती है। मनुष्य के शरीर के अंदर सर से लेकर पैर तक की बनावट की असली जानकारी भी मिलती है। मेडिकल स्टूडेंट्स इन्ही शवों के जरिये यह जान पाते हैं कि शरीर के अंदर अंग कहां-कहां पर रहते हैं, अंगों के काम करने का तरीका क्या है। मेडिकल छात्र मृत आत्मा के प्रति अपनी कृतज्ञता जताने के लिए उसका पूरा सम्मान करते हैं। जिस वक्त देहदानी का शरीर मेडिकल कॉलेज कैम्पस में पहुँचता है तो मेडिकल स्टूडेंट कतारबद्ध होकर खड़े हो जाते हैं। उसके बाद स्ट्रेचर की मदद से शव को मेडिकल कॉलेज के अंदर लाया जाता है, जहां प्रदर्शन कक्ष में शरीर को रखकर सभी उसको सम्मान के साथ नमन करते हैं। डॉक्टर, प्रोफेसर और छात्र छात्राएं उस देह का सम्मान करने के लिए फूल माला भी अर्पित करके नमन करते है। आत्मा की शांति के लिए मौन भी रखा जाता है। इसके बाद ही उसका उपयोग शिक्षा के लिए किया जाता है।
ये मशहूर लोग भी करेंगे देहदान. . .
देश की कई जानी मानी शख्सियतों ने मृत्यु उपरांत अपनी बॉडी को दान देने का शपथ पत्र भर रखा है, जिसमें फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, नवजोत सिंह सिद्धू, आमिर खान, ऐश्वर्या राय बच्चन, सुनील शेट्टी, किरण शॉ मजुमदार, सलमान खान, नंदिता दास, गौतम गंभीर जैसी शख्सियतें शामिल हैं।
भारत में अभी देहदान ना के बराबर…
देश में तकरीबन 63,000 लोगों की मृत्यु रोज होती है लेकिन इसमें से केवल 0.001 फीसदी लोग ही अपनी देहदान करने का इंतजाम करके जाते हैं। देहदान से जुड़ी एक संस्था आर्गन इंडिया डॉट कॉम के अनुसार देश में करीब 50,000 लोगों को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत है तो ढाई लाख लोगों को किडनी की जरूरत रहती है, ये तभी पूरी हो सकती है जबकि कोई अपने अंगों को दान कर दे। देश में हर साल 5 लाख लोग अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा करते हैं लेकिन इसकी मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतराल है। कैसे करें देहदान: अगर आपको ऐसा करना है तो स्थानीय मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों से इस बारे में संपर्क करना चाहिए।
इस क्षेत्र में मदद के लिए कई एनजीओ भी काम कर रहे हैं, इसके लिए आपको पहले एक स्वीकृति पत्र दो लोगों की गवाही में भरना होता है। परिवार को भी आपके इस फैसले के बारे में अच्छी तरह मालूम होना चाहिए ताकि वो इस काम को पूरा कर सकें। किस स्थिति में दान किया जा सकता है: ब्रेन डैड होने पर शरीर के सारे अंग दान किए जा सकते हैं। शरीर के मृत होने पर करीब 6 घंटे तक आंखों का दान किया जा सकता है। गुर्दे, फेफड़े, आंख, यकृत, कॉर्निया, छोटी आंत, त्वचा के ऊतक, हड्डी के ऊतक, हृदय वाल्व और शिराएं दान की जा सकती हैं और इनकी जरूरत लगातार बनी रहती है। अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है, जिनकी बीमारियाँ अंतिम अवस्था में होती हैं तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है।
अंगदान का है ये कानून. . . . .
इसमें ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन एक्ट (होटा) 1994 लागू होता है। वैसे अंगदान में भारत दुनिया में काफी पीछे है। यहां 10 लाख की आबादी पर केवल 0.16 लोग अंगदान करते हैं। जबकि प्रति दस लाख की आबादी पर स्पेन में 36 लोग, क्रोएशिया में 35 और अमेरिका में 27 लोग अंगदान करते हैं। अंगदान और देहदान में अंतर: अंगदान और देहदान में अंतर होता है। देहदान एनाटोमी पढ़ने के काम आता है, जबकि अंगदान किसी व्यक्ति को जीवनदान या उसके जीवन की गुणवत्ता में सुधर के लिए होता है। अंगदान दो तरीके से होता है लाइव डोनेशन और मृत्यु के बाद दान। 13 अगस्त को विश्व अंग दान दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य अंग दान की जरुरत के बारे में लोगों को जागरूक करना है।

विशेष संवाददाता विजय आनंद वर्मा की रिपोर्ट, , ,