हरसिल की हंसी वादियां…
कुदरत की खूबसूरती का बेहतरीन नजारा देखने को मिलता है हरसिल में। यह उत्तराखंड का एक हिल स्टेशन है। यहां आपको दूर-दूर तक ग्रीनरी दिखेगी। वहीं, ट्रेकिंग का मजा भी यहां खूब लिया जा सकता है। करते हैं हरसिल की एक सैरः
नदी, झरने और जंगलों को करीब से देखना चाहते हैं, तो चले आइए हरसिल। यह खूबसूरत हिल स्टेशन उत्तराखंड में उत्तरकाशी-गंगोत्री सड़क पर है। सी लेवल से 7860 फुट की ऊंचाई पर स्थित यह जगह घने जंगलों से घिरी हुई है। यह उत्तरकाशी से 73 किलोमीटर आगे और गंगोत्री से 25 किलोमीटर पीछे स्थित है। अगर आप गंगोत्री, गोमुख और तपोवन जा रहे हैं, तो आपको हरसिल से गुजरना होगा। यहां आपको घाटी भी मिलेगी, तो ऊंचे-ऊंचे पहाड़ भी।
बता दें कि कि भागीरथी और केदार गंगा नदियों के संगम पर एक छोटा सा तीर्थ स्थान भी है। और यहीं से गंगोत्री-गोमुख-तपोवन और गंगोत्री-केदारताल नाम से दो लोकप्रिय ट्रेकिंग पॉइंट्स भी शुरू होते हैं।
ग्रीनरी ही ग्रीनरी
हरसिल में आप जिधर निगाह डालिए, आपको दूर-दूर तक हरियाली नजर आएगी। कहीं मखमली घास, तो कहीं ऊंचे-ऊंचे देवदार व भोजपत्र के पेड़। यही नहीं, आपको पेड़ों के जमघट भी देखने को मिलेंगे। अगर आप थके हुए हैं, तो इनके नीचे कुछ पल लेटकर ही रिलैक्स हो सकते हैं। गोमुख से निकलने वाली भागीरथी नदी यहां एकदम कूल नजर आती है और आप इसके तट पर घूमने का मजा भी खूब ले सकते हैं। पहाड़ों के टेढे़-मेढ़े रास्तों से गुजरते हुए यह नदी बेहद खूबसूरत दिखती है।
बर्फ से ढके पहाड़
हरसिल में नदी, झरने और जंगल से थोड़ा ऊपर निगाह डालते ही आपकी आंखें खुली की खुली रह सकती हैं। बर्फ से ढके पहाड़ इतने खूबसूरत नजर आते हैं, मानो पेंटिंग बनाकर रख दी गई हों। यही नहीं, ढलानों पर फैले ग्लेशियरों की छटा भी कुछ कम दिलकश नहीं होती।
तालों का नजारा
हरसिल से सात किलोमीटर की दूरी पर है साताल। यहां सात तालों का नजारा देखने लायक है। यह झील 9 हजार फीट की ऊंचाई पर है। यह झील इतनी बड़ी है कि आप पहाड़ियां, आसमान और बादलों की परछाइयां एक साथ देख सकते हैं और वह भी कंपकंपाती हुई। नेचर को झील के अंदर देखने का यह सीन अपने आप में अनोखा है।
मंदाकिनी फॉल
इस पूरी घाटी में झरनों की भरमार है। इनमें सबसे पॉप्युलर है मंदाकिनी फॉल। फिल्म राम तेरी गंगा मैली हो गई में एक झरने में ऐक्ट्रेस मंदाकिनी को नहाते हुए दिखाया गया था, तब से इस झरने का नाम मंदाकिनी फॉल पड़ गया। इसकी धार इतनी तेज है कि अगर आप एकटक देखें, तो लगेगा जैसे आसमान से आ रही हो। इसके अलावा भी यहां पर कई छोटे-बड़े झरने हैं। इन झरनों की आवाज किसी म्यूजिक से कम नहीं होती।
ट्रेकिंग विद कैपिंग
अगर आप ट्रेकिंग के शौकीन हैं, तो सात किलोमीटर की ट्रेकिंग के बाद आप साताल पहुंच जाते हैं। यहां आप कैपिंग का भी मजा ले सकते हैं। कैपिंग के लिए आपको यहां पर बेसिक सुविधाएं भी उपलब्ध हो जाएंगी।
सेब के बगीचे
यहां के सेब के बगीचे खूब लुभाते हैं। और इन बगीचों की कहानी भी कुछ खास है। माना जाता है जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत आई थी, तो फेडरिक विल्सन नाम के एक एंप्लॉयी को हरसिल बहुत पसंद आया था। उन्हें यह जगह इतनी भायी कि उन्होंने नौकरी छोड़कर यही बसने का मन बना लिया। जल्दी ही वह लोकल लोगों के साथ घुलमिल गए और उनकी लैग्वेंज भी सीख ली। फिर उन्होंने यहीं पर शादी भी कर ली।
बता दें कि विल्सन ने यहां इग्लैंड से सेब के पौधे मंगाकर लगाए, जो खूब फले-फूले। यही वजह है कि आज भी यहां सेब की एक प्रजाति विल्सन के नाम से पॉप्युलर है। वहीं, हरसिल से तकरीबन 1 किलोमीटर की दूरी पर डोडीताल है। इस ताल में ट्राडा मछलियों को लाने का श्रेय भी विल्सन को ही जाता है।
जाने का समय
अप्रैल से अक्टूबर तक का समय हरसिल जाने के लिए सही है। लेकिन अगर आप बर्फ गिरते हुए देखना चाहते हैं, तो नवंबर से मार्च तक का समय सही रहेगा। इन महीनों में यहां की पहाड़ियां और पेड़ बर्फ से ढक जाते हैं।
कैसे पहुंचे
हरसिल जाने के लिए आपको सबसे पहले ऋषिकेश पहुंचना होता है। ऋषिकेश देश के हर कोने से रेल और बस मार्ग से जुड़ा है। ऋषिकेश से आप बस या टैक्सी द्वारा 218 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं। अगर आप फ्लाइट से जाना चाहते हैं, तो नजदीकी एयरपोर्ट जौली ग्रांट है। जौलीग्रांट से बस या टैक्सी से 235 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यहां पहुंच सकते हैं।
ठहरने के लिए
हरसिल में ठहरने के लिए लोकनिर्माण विभाग का एक बंगला, पर्यटक आवास गृह और स्थानीय निजी होटल हैं। खाने-पीने के लिए साफ और सस्ते होटल भी यहां आपको आसानी से मिल जाएंगे। आप वहां गर्म कपड़े ले जाना ना भूलें। यहां पर 12 महीने ही ठंड रहती है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…