चलिए गंगटोक की हसीन वादियों में…
गंगटोक भारत के उत्तर पूर्व में स्थित सिक्किम की राजधानी है। यह अपने ऐतिहासिक मठों तथा प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। गंगटोक भारत के महत्वोपूर्ण हिल स्टेइशनों में एक है। यह शहर पारम्पंरिकता और आधुनिकता का मिश्रण है। गंगटोक समुद्र तल से 1547 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां बौद्ध धर्म से संबंधित बहुत से महत्वूंपर्ण स्थाोन हैं।
सिक्किम नेपाल और भूटान की सीमा पर स्थित है।19वीं शताब्दीे में गंगटोक यहां की राजधानी बना। यह सिक्किम के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह शहर रानीपुल नदी के तट पर बसा हुआ है। इस शहर से पूरी कंचनजंघा श्रेणी को देखा जा सकता है। यहां के लोग कंचनजंघा को देवी के रुप में पूजते हैं। इस शहर में सालों भर वर्षा होती है। इस कारण यहां सालोभर सुहाना (हल्कौ ठंडा) मौसम रहता है। पर्यटक यहां सालों भर घूमने जा सकते हैं।
क्याक देखें यहां देखने लायक कई स्थाजन हैं जैसे, गणेश टोक, हनुमान टोक तथा ताशि व्यू प्वांरइट। अगर आप गंगटोक घूमने का पूरा लुफ्त उठाना चाहते हैं तो इस शहर को पैदल घूमें। यहां से कंचनजंघा नजारा बहुत ही आकर्षक प्रतीत होता है। इसे देखने पर ऐसा लगता है मानो यह पर्वत आकाश से सटा हुआ है तथा हर पल अपना रंग बदल रहा है।
यहां के मठ, स्तू प तथा प्राकृतिक सुंदरता के कारण गंगटोक यात्रा आपके जेहन में हमेशा रहेगी।अगर आपकी बौद्ध धर्म में रुचि है तो आपको इंस्टीरट्यूट ऑफ तिब्बैतोलॉजी जरुर घूमना चाहिए। यहां बौद्ध धर्म से संबंधित अमूल्यच प्राचीन अवशेष तथा धर्मग्रन्थख रखे हुए हैं। यहां अलग से तिब्बरतियन भाषा, संस्कृाति, दर्शन तथा साहित्यत की शिक्षा दी जाती है। इन सबके अलावा आप प्राचीन कलाकृतियों के लिए पुराने बाजार, लाल बाजार या नया बाजार भी घूम सकते हैं।
यह स्थाअन गंगटोक के पश्चिम में 145 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां कुछ घर तथा अधिक संख्या् में होटल हैं। यहां से कंचनजघां का अदभूत दृश्यु दिखता है। यहां से पर्वत चोटी बहुत नजदीक लगती है। ऐसा लगता है मानो यह मेरे बगल में है और मैं इसे छू सकता हूं। यहां मौसम बहुत सुहावना होता है। पिलींग से कुछ ही दूरी पर सिक्किम का दूसरा सबसे पुराना मठ सांगो-चोलिंग है। यह सिक्किम के महत्व्पूर्ण मठों में से एक है। इस मठ में एक छोटा सा कब्रिस्ता्न भी है। इस मठ के दीवारों पर बहुत ही सुंदर चित्रकारी की गई है। पिलींग आने वाले को इस मठ को अवश्यू घूमना चाहिए।
रुमटेक घूमे बिना गंगटोक का सफर अधूरा माना जाता है। यह मठ गंगटोक से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मठ 300 वर्ष पुराना है। रुमटेक सिक्किम का सबसे पुराना मठ है। 1960 के दशक में इस मठ का पुननिर्माण किया गया था। इस मठ में एक विद्यालय तथा ध्या न साधना के लिए एक अलग खण्डम है। इस मठ में बहुमूल्या थंगा पेंटिग तथा बौद्ध धर्म के कग्यूिपा संप्रदाय से संबंधित वस्तुैएं सुरक्षित अवस्थाा में है। इस मठ में सुबह में बौद्ध भिक्षुओं द्वारा की जाने वाली प्रार्थना बहुत कर्णप्रिय होती है।
यहां बौद्ध धर्म से संबंधित प्राचीन ग्रंथों का सुंदर संग्रह है। यहां का भवन भी काफी सुंदर है। इस भवन की दीवारों पर बुद्ध तथा संबंधित अन्यक महत्वरपूर्ण घटनाओं का प्रशंसनीय चित्र है। यह भवन आम लोगों और पर्यटकों के लिए लोसार पर्व के दौरान खोला जाता है। लोसार एक प्रमुख नृत्य् त्योरहार है। ताशी लिंग मुख्यु शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से कंचनजंघा श्रेणी बहुत सुंदर दिखती है। यह मठ मुख्या रुप से एक पवित्र बर्त्तन बूमचू के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि इस बर्त्तन में पवित्र जल रखा हुआ है। यह जल 300 वर्षों से इसमें रखा हुआ है और अभी तक नहीं सुखा है
पेमायनस्तीा मठ
यह मठ पिलींग से थोड़ी देर की पैदल दूरी पर स्थित है। ग्या लसिंग से इसकी दूरी 6 किलोमीटर पड़ती है। यह सिक्किम का सबसे महत्वापूर्ण और प्रतिष्ठित मठ है। यहां बौद्ध धर्म की पढ़ाई भी होती है। यहां बौद्ध धर्म की प्राथमिक, सेकेण्डीरी तथा उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है। यहां 50 बिस्तेरों का एक विश्राम गृह भी है। पर्यटक को भी यहां ठहरने की सुविधा प्रदान की जाती है। इस मठ में कई प्राचीन धर्मग्रन्थख तथा अमूल्यं प्रतिमाएं सुरक्षित अवस्था। में हैं। पेमायनस्तीव मठ का विशेष आकर्षण यहां लगने वाला बौद्ध मेला है। यहां हर वर्ष फरवरी महीने में यह मेला लगता है।
गंगटोक से 40 किलोमीटर की दूरी पर यह झील स्थित है। यह झील चारों ओर से बर्फीली पहाडियों से घिरा हुआ है। झील एक किलोमीटर लंबा तथा 50 फीट गहरा है। यह अप्रैल महीने में पूरी तरह बर्फ में तब्दीहल हो जाता है। सुरक्षा कारणों से इस झील को एक घंटे से अधिक देर तक नहीं घूमा जा सकता है। जाड़े के समय में इस झील में प्रवास के लिए बहुत से विदेशी पक्षी आते हैं। इस झील से आगे केवल एक सड़क जाती है। यही सड़क आगे नाथूला दर्रे तक जाती है। यह सड़क आम लोगों के लिए खुला नहीं है। लेकिन सेना की अनुमति लेकर यहां तक जाया जा सकता है।
हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…