विश्वस्तरीय पटल पर पहचान मिलेगी कभी सोचा न था : शंकर श्रीकुमार…

विश्वस्तरीय पटल पर पहचान मिलेगी कभी सोचा न था : शंकर श्रीकुमार…

मुंबई, 13 नवंबर। इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में दुनियाभर से फिल्म निर्माताओं द्वारा बनाई फिल्मों का चयन होता है।इस वर्ष  हाल ही में मुंबई के रहने वाले एक लेखक/डायरेक्टर/ प्रोड्यूसर की फिल्म इंडियन पैनोरमा कैटेगरी में चुनी गई है जिसका प्रीमियर गोवा में 20 नवंबर 28 नवंबर तक होगा। यहां हजारों फिल्मों में से मात्र कुछ चुनिंदा फिल्मों का ही चयन होता है। फिल्म ’एल्फा बीटा गामा’ को इंडियन प्रफोमा फीचर फिल्म कैटेगरी ने खिताब जीता है।यह हमारे देश का 52वां प्रीमियर है। किस आधार पर फिल्म को इतना बड़ा खिताब मिला व अन्य तमाम मुद्दे पर फिल्म के निर्माता शंकर श्रीकुमार से योगेश कुमार सोनी की बातचीत के मुख्य अंश…

आपकी फिल्म को इतना बड़ा खिताब किस आधार पर मिला।

यह मेरे बिल्कुल सपने जैसा है। मुझे बिल्कुल भी यकीन नही हो रहा है कि मेरी फिल्म इतने बड़े मंच पर चुनी गई। इस पटल पर दुनियाभर के दिग्गजों की फिल्म ही चुनी जाती है और जितनी मेरी उम्र नही उससे ज्यादा तो उनके पास अनुभव है। अभी तो फिल्म पैनोरमा कैटेगरी में चुनी गई है लेकिन भगवान का आर्शीवाद और दर्शकों का प्यार रहा तो गोल्डन और सिल्वर पीकॉक अवार्ड के लिए चुनी जाएगी। यह किसी भी लेखक/डायरेक्टर/ प्रोड्यूसर के लिए एक सपने जैसा होता है। फिल्म को बनाने के लिए बहुत मेहनत की है जिसका भगवान ने मुझे यह परिणाम दिया है।

फिल्म की पटकथा में क्या दर्शाया हैं आपने?

एक शादी टूट रही है और एक होने वाली है। चिरंजीव नाम का एक व्यक्ति अपनी पत्नी से अलग रहता है। इसको लगता है कि उसकी शादी उसके करियर को खराब कर देगी तो उसने मिताली व अपने घर को छोड दिया था। अब वो एक कामयाब फिल्म मेकर है । मिताली, चिरंजीव को फोन करके कहती है कि वह भी अपने ऑफिस में रवि नाम के लड़के से प्यार करती है और अब वह भी अलग होना चाहती है। चिरंजीव इस बात को सुनकर बहुत बेचैन हो जाता है और मिताली से कहता है कि वह रात को अपने घर आकर बात करता है और जब वह घर जाता है तो रवि भी वहीं होता है। कोरोना काम समय होता है और उनकी अपार्टमेंट में किसी को कोरोना होता है और बिल्डिंग सील हो जाती है जिससे वह तीनों चौदह के लिए घर में एक साथ रहते हैं और इसके बाद तीनों की जिंदगी बदल जाती है।

फिल्म की संरचना के विषय में बताइये ?

बीते वर्ष 2020 के कोरोना काल में मैंने अपने स्वयं की करीब यह फिचर फिल्म बनाई जिसमें करीब मैंने चालीस लोगों को एकत्रित काम शुरु कर दिया। कोरोना काल का समय था दुनिया के साथ हम भी संकट के दौर से गुजर रहे थे लेकिन जज्बा मेरी पूरी टीम में था। अप्रैल में स्क्रिप्ट लिखी,मई में कलाकार और क्रू ढूंढा और जुलाई में इसको शूट किया। चूंकि पैसा खत्म हो चुका था तो इसलिए शूटिंग रुक गई थी। इसके बाद नंबर 2020 नॉनसेंस इंटरटेंटमेंट हमारे साथ जुड़ा और उन्होंने हमारी स्क्रिप्ट अच्छी लगी और उन्होंने हमारी फिल्म को आगे बढाया और इस वर्ष जून में हमारी फिल्म पूरी हुई।

आजकल रिश्तों को समझना मुश्किल क्यों होता जा रहा है। यदि दोनों ही दंपत्ति काम करने वाले होते हैं तो रिश्ते ज्यादा उलझ जाते है। आपके इस पर विचार। रिश्तों को समझना हमेशा से ही मुश्किल था चूंकि रिश्ते को समझने व निभाने के लिए कुछ समय चाहिए होता है। लेकिन अब लोगों पर समय का इतना अभाव होता है कि वह रिश्तो समझना ही नही चाहते। रिश्ता एक भरोसा है,एहसास है,दोनों लोगों की जिम्मेदारी है जिसे मिलकर ही निभाना होता है। यदि एक भी कमजोर पड़ जाएगा तो काम नही चलेगा।

अपने कुछ अनुभव साझा कीजिए और किन प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है ?

इस फिल्म के बाद मेरे पंखों को उड़ान मिल गई और मैं हाल ही के परिवेश में रिश्तों का रिश्तों की सच्चाई दर्शाना चाहता हूं। उलझे रिश्तो को सुलझाने की कहानी लिखना चाहता हूं। फिलहाल मैं दो फिल्में और बना रहा हूं जिनका नाम है ‘स्वपन सुंदरी ’व’

हिन्द वतन समाचार की रिपोर्ट…