हाइब्रिड माध्यम काम नहीं कर पा रहा, अदालतों को शारीरिक उपस्थिति के साथ काम करना होगा: न्यायालय

हाइब्रिड माध्यम काम नहीं कर पा रहा, अदालतों को शारीरिक उपस्थिति के साथ काम करना होगा: न्यायालय

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सुनवाई का ‘हाइब्रिड’ माध्यम कारगर नहीं है और सामान्य स्थिति बहाल करनी होगी तथा अदालतों को शारीरिक उपस्थिति के साथ काम करना होगा क्योंकि मामलों की

वीडियो कांफ्रेंस से सुनवाई सामान्य स्थिति नहीं हो सकती। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने कहा, ‘‘यहां अदालत में बैठना और स्क्रीन पर देखना हमें खुशी नहीं दे रहा है।’’ पीठ ने कहा कि वह चाहती है कि अदालतें लोगों के लिए खोली जाए और न्याय सभी नागरिकों की पहुंच के दायरे में हो।न्यायालय ने कहा, ‘‘हमने हाईब्रिड माध्यम से काम करने

की कोशिश की। लोग अदालतों में नहीं आ रहे हैं। सामान्य स्थिति बहाल करनी होगी और अदालतों को शारीरिक उपस्थिति के साथ काम करना होगा।’’ इस विषय में नोटिस जारी कर चुका न्यायालय गैर सरकारी संगठन नेशनल फेडरेशन आफ सोसाइटिज फॉर फास्ट जस्टिस और जूलियो रिबेइरो, शैलेश आर गांधी जैसे प्रख्यात नागरिकों की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है। याचिका के जरिए वर्चुअल कोर्ट सुनवाई वादियों के लिए एक मूल अधिकार घोषित करने का अनुरोध किया गया है।

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पीठ ने याचिकाकर्ताओं को सुझाव देने को कहा। साथ ही यह भी कहा कि वह चार सप्ताह बाद अगली तारीख पर इस बारे में विचार करेगी। सुनवाई की शुरूआत में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनोज स्वरूप ने दलील दी कि हाईब्रिड माध्यम को सभी नागरिकों के लिए न्याय तक पहुंच के हिस्सा के तौर पर जारी रखा जाए। पीठ ने कहा, ‘‘क्या आपने हमारे द्वारा बीती रात जारी की गई मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) देखी है? तब हमें एसओपी को रद्द करना पड़ेगा।

न्यायालय ने कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि अदालतें सभी लोगों के लिए खुले और न्याय तक उनकी पहुंच हो। सीआरपीसी और आईपीसी के प्रावधान हैं कि न्याय खुला होना चाहिए। यह कहना अलग चीज है कि अदालत की कार्यवाही का प्रसारण होना चाहिए और यह कहना दूसरी चीज है कि कोविड-19 से निजात मिलने के बाद, इस संस्था को बंद कर देना चाहिए क्योंकि वर्चुअल सुनवाई नागरिकों का मूल अधिकार है, जिसका मतलब है कि लोग अदालत नहीं आएंगे। ’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘आप कहना चाहते हैं कि न्यायाधीश अदालत कक्ष में बैठै और वकील मसूरी, मुक्तेश्वर, गोवा और लंदन से दलील पेश करें…।’’ पीठ ने कहा कि जब एक वकील शारीरिक रूप से अदालत कक्ष में उपस्थित होता है और वह हमारी आंखों में देख कर दलील देता है तो यह कहीं अधिक प्रभावी होता है।

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